पंजाब

सांसद राघव चड्ढा ने संसद में उठाया वायु प्रदूषण का मुद्दा, बताया- कैसे खत्म हो सकती है पराली जलाने की समस्या

सांसद राघव चड्ढा ने संसद में उत्तर भारत में बढ़ते वायु प्रदूषण के गंभीर मुद्दे पर ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण केवल दिल्ली का नहीं, बल्कि पूरे उत्तर भारत का मुद्दा है। दिल्ली के अलावा भागलपुर, मुजफ्फरनगर, नोएडा, आगरा, फरीदाबाद जैसे कई शहरों में स्थिति बदतर है। चड्ढा ने स्पष्ट किया कि पराली जलाना वायु प्रदूषण की एकमात्र वजह नहीं है, और किसानों को दोष देना पूरी तरह गलत है। उन्होंने कहा कि पंजाब में पहले के मुकाबले इस साल पराली की घटनाएं कम हुईं हैं। पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में 70 फीसदी से ज्यादा की कमी आई है। जबकि एमपी, राजस्थान औऱ यूपी में पराली जलाने के मामले बढ़े हैं।

 

राघव चड्ढा ने कहा कि हर साल नवंबर आते ही किसानों को वायु प्रदूषण का दोषी ठहराया जाता है। उन्होंने कहा, “पूरे साल हम कहते हैं कि किसान हमारे अन्नदाता हैं, लेकिन जैसे ही पराली जलाने का समय आता है, उन्हें अपराधी मान लिया जाता है।” उन्होंने IIT की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि पराली जलाना वायु प्रदूषण के कई कारणों में से एक है, लेकिन इसका सारा दोष किसानों पर डालना अनुचित है।

उन्होंने आगे कहा कि कोई भी किसान खुशी से पराली नहीं जलाता। धान की फसल कटने के बाद किसानों के पास केवल 10-12 दिनों का समय होता है, जिसमें उन्हें खेत खाली करना होता है ताकि अगली फसल बोई जा सके। उन्होंने बताया कि इस प्रक्रिया में हैप्पी सीडर और पैडी चॉपर जैसी मशीनें बहुत महंगी होती हैं, और इसका खर्च प्रति एकड़ 2000 रुपये तक आता है। ऐसे में वह पैसा कहां से लाएंगे? छोटे किसान इनका खर्च नहीं उठा सकते।

चड्ढा ने कहा कि पराली जलाने से सबसे अधिक नुकसान किसानों और उनके परिवारों को होता है, जो जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर होते हैं। उन्होंने कहा कि पंजाब में पहले के मुकाबले इस साल पराली की घटनाएं कम हुईं हैं। पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में 70 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई है। जबकि मध्य प्रदेश, राजस्थान औऱ उत्तर प्रदेश में पराली जलाने के मामले बढ़े हैं।

दिया ये समाधान 

सांसद चड्ढा ने पराली जलाने की समस्या से निजात पाने के लिए व्यावहारिक समाधान सुझाए। उन्होंने सरकार से अपील की कि पंजाब और हरियाणा के किसानों को 2500 रुपये प्रति एकड़ का मुआवजा दिया जाए।
•    इसमें से 2000 रुपये केंद्र सरकार दे और 500 रुपये राज्य सरकार।
•    यह मुआवजा किसानों को पराली जलाने से रोकने में मदद करेगा और प्रदूषण को कम करेगा।
उन्होंने भरोसा जताया कि इस योजना से किसान पराली जलाना बंद कर देंगे और वायु प्रदूषण में कमी आएगी।

फसल विविधीकरण की जरूरत
चड्ढा ने लॉन्ग-टर्म समाधान के तौर पर फसल विविधीकरण (Crop Diversification) की वकालत की। उन्होंने बताया कि पंजाब ने देश के खाद्य संकट को हल करने के लिए धान की खेती शुरू की थी, लेकिन इसके कारण पंजाब का पानी 600 फीट नीचे चला गया और मिट्टी खराब हो गई।

उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों को धान की खेती से हटकर मक्का, दालें, तिलहन और कपास जैसी फसलों की ओर बढ़ने की दिशा में काम करना चाहिए।

AQI पर ध्यान देने की अपील

सांसद ने कहा कि वायु प्रदूषण की गंभीरता को समझने के लिए हमें AQI (एयर क्वालिटी इंडेक्स) पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उन्होंने कहा, “हम AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) की बात करते हैं, लेकिन अगर हमें प्रदूषण से निजात पानी है, तो हमें AQI की बात करनी होगी।”

किसानों के लिए जागरूकता और सहायता जरूरी

चड्ढा ने सुझाव दिया कि किसानों को पराली जलाने के विकल्पों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए।
•    सरकार को बायोडीकंपोजर और मशीनरी पर सब्सिडी देनी चाहिए।
•    किसानों को नए कृषि तरीकों के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
•    राज्य और केंद्र सरकारों को मिलकर इस दिशा में काम करना चाहिए।

वायु प्रदूषण की सीमा से परे समस्या

राघव चड्ढा ने जोर देकर कहा कि वायु प्रदूषण सीमाओं को नहीं जानता। यह समस्या केवल दिल्ली या किसी एक राज्य की नहीं है, बल्कि पूरे उत्तर भारत की है। उन्होंने कहा कि प्रदूषण से लड़ने के लिए सभी राज्यों को मिलकर काम करना होगा।

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